Tuesday, 20 March 2012

स्वास्तिक का अर्थ

हिंदू धर्म में मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह का रेखांकन किया जाता है, लेकिन वास्तुकला और शास्त्र में इसकी मान्यता तमाम देशों में बढ़ रही है.स्वस्तिक वास्तु का मूल चिह्न है.स्वस्तिक दिशाओं का ज्ञान करवाने वाला शुभ चिह्न है.बुरी नजर से बचाने व उसमें सुख-समृद्धि के वास के लिए घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वस्तिक बनाया जाता है.स्वास्तिक का भारतीय संस्कृति में बडा महत्व है.स्वस्तिक पॉजिटिव तथा नेगेटिव दो अलग-अलग शक्ति प्रवाहों के मेल को निरूपित करता है.

स्वास्तिक का अर्थ

इसे हमारे सभी व्रत, पर्व, त्यौहार, पूजा एवं हर मांगलिक अवसर पर कुंकुम से अंकित किया जाता है.यह मांगलिक चिन्ह अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है.स्वस्तिक का अर्थ इसका सामान्य अर्थ शुभ, मंगल एवं कल्याण करने वाला है.स्वास्तिक शब्द सु और अस धातु से बना है, सु का अर्थ है शुभ, मंगल और कल्याणकारी, अस का अर्थ है अस्तित्व में रहना.यह पूर्णतः कल्याणकारी भावना को दर्शाता है.

कब ,कैसे और कहाँ बनाये

मुख्य द्वार के ऊपर सिन्दूर से स्वस्तिक का चिह्न बनाना चाहिए. स्वास्तिक बनाने के लिए धन चिन्ह बनाकर उसकी चारों भुजाओं के कोने से समकोण बनाने वाली एक रेखा दाहिनी ओर खींचने से स्वास्तिक बन जाता है.रेखा खींचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारम्भ करना चाहिए. इसमें दक्षिणवर्त्ती गति होती है. सदैव कुंकुम, सिन्दूर व अष्टगंध से ही अंकित करना चाहिए. यह चिह्न नौ अंगुल लम्बा व नौ अंगुल चौड़ा हो. स्वस्तिक 90 डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनाएँ. केसर से, कुमकुम से, सिन्दूर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुली से घर में जहां-जहां वास्तुदोष हो, वहां यह चिह्न बनाया जा सकता है. दोनों रेखाओं के सिरों पर बायीं से दायीं ओर समकोण बनाती हुई रेखाएं इस तरह खींची जाती हैं कि वे आगे की रेखा को न छू सकें.

वास्तुशास्त्र में स्वास्तिक

स्वस्तिक को किसी भी स्थिति में रखा जाए, उसकी रचना एक-सी ही रहेगी.स्वस्तिक के चारों सिरों पर खींची गयी रेखाएं किसी बिंदु को इसलिए स्पर्श नहीं करतीं, क्योंकि इन्हें ब्रह्माण्ड के प्रतीक स्वरूप अन्तहीन दर्शाया गया है. देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिह्न ही स्वास्तिक के आकार का होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ माना जाता है.तर्क से भी इसे सिद्ध किया जा सकता है.स्वास्तिक की गति और दिशा बाईं से दाईं ओर है.पृथ्वी को गति प्रदान करने वाली ऊर्जा की भी यही दिशा है. उसका ऊर्जाचक्र प्रमुख स्रोत उत्तरायण से दक्षिणायण की ओर है., जिससे उसमें चुम्बकीय ऊर्जा व दिव्य शक्तियों का संचार रहे. वास्तुदोष दूर करने के लिए स्वस्तिक को बेहद उपयोगी माना गया है.


हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग-अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है, बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है, स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर हमेशा प्रभावी रहे, स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे, चारों तरफ भटके नही,

दैविक महत्व

स्वास्तिक 27 नक्षत्रों का सन्तुलित करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है.यह चिन्ह नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करता है..

स्वास्तिक के प्रयोग से धनवृद्धि, गृहशान्ति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति भी दिलाता है.


हल्दी से अंकित स्वास्तिक शत्रु शमन करता है.इसका भरपूर प्रयोग अमंगल व बाधाओं से मुक्ति दिलाता है.सभी देवताओं की प्रतिमा पर रोली का टीका लगाया जाता है.( लाल टीका तेजस्विता, पराक्रम, गौरव और यश का प्रतीक माना गया है.लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को दर्शाता है.यह रंग लोगों के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है.यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है.यह रंग मंगल ग्रह का है जो स्वयं ही साहस, पराक्रम, बल व शक्ति का प्रतीक है.यह सजीवता का प्रतीक है और हमारे शरीर में व्याप्त होकर प्राण शक्ति का पोषक है.मूलतः यह रंग ऊर्जा, शक्ति, स्फूर्ति एवं महत्वकांक्षा का प्रतीक है.स्वास्तिक लाल रंग से ही अंकित किया जाना चाहिए या बनाना चाहिए.गोबर और मिट्टी से बना स्वास्तिक भी मंगल कार्यो में बनाना चाहिए।


इसलिए जब भी कोई कार्य करे तब स्वास्तिक का चिन्ह जरुर बनाये .

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